**मोहतरम नाज़रीन!**
आज का किस्सा बहुत अहम और सबक देने वाला है, खासतौर पर उन लोगों के लिए जो अपने रिश्तेदारों को अहमियत नहीं देते, और यतीम बच्चों के साथ अच्छा बर्ताव नहीं करते।
**कहानी का रावी कहता है:**
हम एक छोटे से कस्बे में रहते थे। मेरे वालिद साहब बहुत गरीब और फकीर तबीयत के थे। बहुत जल्द ही उनका इंतकाल हो गया। न कोई भाई था, न बहन। मैं और मेरी मां अकेले रह गए।
मेरे वालिद का एक बड़ा भाई (यानी मेरा ताया) और एक छोटा भाई (चाचा) था। ताया साहब पूरे कस्बे के सबसे अमीर आदमी थे – दौलत, कारोबार, सब कुछ था। उनके पास एक ही बेटी थी। मेरा चाचा भी गरीब नहीं था, लेकिन इतना अमीर भी नहीं – औसत हालात थे, और उसकी भी एक बेटी थी।
**जब मेरे वालिद का इंतकाल हुआ**, तो होना तो यह चाहिए था कि ये दोनों भाई हमारा ख्याल रखते। लेकिन न किसी ने हमें पूछा, न ही कोई मदद की। हमारे हमसाए, आसपास के लोग ही कभी-कभी ज़कात-सदक़ा दे देते थे, जिससे गुज़ारा चलता। वक़्त गुज़रता गया। जब मैं 17 साल का हुआ, तो मैंने अपनी मां से कहा, “अब बहुत हो गया। अब मैं मेहनत करूंगा, चाहे मुझे कुली का काम करना पड़े, मैं बाज़ार में जाऊंगा।”
**मैं बाज़ार गया।** वहां मुझे मेरा ताया मिला। मैंने उन्हें सलाम किया। उन्होंने पूछा, “यहां कैसे आए हो?” मैंने कहा, “मैं अब मेहनत करना चाहता हूं, चाहे मज़दूरी ही क्यों न हो।”ताया ने कहा, “मेरे पास आ जाओ, मैं तुम्हें काम पर रख लूंगा। लेकिन तुम्हें तनख्वाह नहीं मिलेगी – सिर्फ सुबह-शाम का खाना मिलेगा, और तुम्हारी मां को भी।” मैंने अपनी मां से मशवरा किया। उन्होंने कहा, “बेटा, जो भी है, तुम्हारा ताया है। उसके पास काम कर लो।”
**मैंने 7 साल काम किया**, कोई छुट्टी नहीं, कोई तनख्वाह नहीं, सिर्फ खाना और मामूली कपड़े कभी-कभार।
**एक दिन,** जब मैं उनके घर गया, तो उनकी बेटी से मुलाकात हुई। पहली बार महसूस हुआ कि मेरा भी कोई रिश्ता है इस घर से। फिर मैंने मां से बात की और कहा कि मैं अपने ताया की बेटी से निकाह करना चाहता हूं।
मां ने कहा, “बेटा, वो बड़ा आदमी है, शायद रिश्ता न दे, लेकिन पूछने में हर्ज क्या है।”
**मैंने ताया से बात की।** उन्होंने पहले मुझे खाने पर बुलाया और फिर जब मैंने अपनी बात रखी, तो उन्होंने मेरा मज़ाक उड़ाते हुए कहा, “अगर कल आते तो शायद रिश्ता दे देता, लेकिन अब तो बेटी का रिश्ता तय हो चुका है।”
मैं उदास होकर घर लौटा। मां ने कहा, “वो झूठ बोल रहा है। कोई रिश्ता तय नहीं हुआ।”
**मैंने तय किया अब उसके पास काम नहीं करूंगा।** मां ने कहा, “अब तुम 25 साल के हो, खुद मेहनत करो।” और मां ने घर के पुराने जमा किए हुए कुछ दिरहम मुझे दिए और दुआ के साथ रवाना किया।
**बाज़ार में मेरा छोटा चाचा मिला।** उसने पूछा, “क्या हुआ?” मैंने सब बताया। उसने दो छोटी बकरियां मेरे लिए खरीदीं और कहा, “जाओ, बेचो।”
**अल्लाह के फज़ल से**, मैंने बकरियां बेचीं और मुनाफ़ा हुआ। कुछ दिन बाद, चाचा ने ऊंटों का कारोबार शुरू करने को कहा, और हमने साझेदारी कर ली। जल्द ही हमारा कारोबार चल निकला।
**एक दिन**, चाचा ने कहा, “मेरे घर मेहमान आ रहे हैं, तुम मदद कर दो।” मैं गया, मेहमानों के लिए शरबत वगैरह तैयार किया। कुछ देर बाद मस्जिद के इमाम और मोहल्ले के लोग आए।
**चाचा ने सबके सामने कहा:** “मैं अपनी बेटी का निकाह अपने भतीजे के साथ करना चाहता हूं।” मैं हैरान रह गया! उसी वक़्त निकाह हुआ, 50 दीनार हक़-मेहर तय हुआ।
**मैंने मां को बताया,** वो बहुत खुश हुईं। फिर मेरी बीवी मेरे घर आ गई – खूबसूरत, नेक और सलीक़ामंद। अल्लाह ने मुझे औलाद से नवाज़ा – बेटे-बेटियाँ, घर में रौनक थी।
**फिर एक दिन**, अचानक मेरे दरवाज़े पर दस्तक हुई। देखा – मेरा वही बड़ा ताया खड़ा था, सिर झुकाए, परेशान। उसने कहा, “कारोबार खत्म हो गया, खाने को कुछ नहीं।”
**मैंने उसे पैसे दिए।** अगले दिन मैंने अपने छोटे चाचा को बताया। उन्होंने कहा, “ये तेरा चाचा है, इज्ज़त से कहो – आज से तुम्हारा हर खर्चा हम उठाएंगे।”
**हमने उसका मासिक खर्च तय कर दिया।** उसकी बेटी अब भी कुँवारी थी। कुछ समय बाद, खबर आई कि ताया का इंतकाल हो गया। उसकी बेटी की शादी एक बूढ़े से कर दी गई।
---
**नाज़रीन कराम,**
यह कहानी हमें सिखाती है कि कभी भी किसी रिश्तेदार को छोटा मत समझो। वक्त बदलता है। जो आज गरीब है, कल अमीर हो सकता है। और जो आज ताक़तवर है, कल कमजोर भी हो सकता है।
**नबी-ए-करीम ﷺ ने फरमाया:**
> "जो शख्स चाहता है कि उसके रिज्क में बरकत हो, उसकी उम्र लंबी हो – उसे चाहिए कि रिश्तेदारों से अच्छे ताल्लुकात रखे (सिला-रहमी करे)।"
और एक और हदीस है:
> "जो यतीम के सिर पर हाथ रखता है, उसकी किफालत करता है – क़यामत के दिन जन्नत में मेरा पड़ोसी होगा।"
---
**अख़िर में यही कहेंगे:**
रिश्ते अल्लाह की नेमत हैं। इनकी कद्र करो, यतीमों का ख्याल रखो, सिला-रहमी करो – यही इंसानियत है, यही इस्लाम है।
0 Comments